देहरादून। सियासत में नियमों और कमेटी के बनने राजनितिक प्रतिक्रिया आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन प्रतिक्रिया नकारात्मक आती है तो सरकार सवालों के घेरे में जरूर आती है। चाहे किसान बिल हो या अग्निवीर या फिर सीएए या एनआरसी। कुछ इस तरह की राजनितिक सियासत देवभूमि उत्तराखण्ड में देखने को मिल रह है। जहां नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने भू-कानून सुधार को लेकर बनाई गई कमेटी द्वारा दी गई संस्तुतियों पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया है । इसको लेकर नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने प्रेस नोट जारी कर सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। मीडिया को जारी एक प्रेस नोट में उन्होंने कहा कि भू-कानून में सुधार के लिए बनाई गई उच्च अधिकार प्राप्त समिति की संस्तुतियों से कोई नादान व्यक्ति भी निष्कर्ष निकाल सकता है कि राज्य सरकार ‘उच्च अधिकार प्राप्त समिति’ के गठन के समय से लेकर रिपोर्ट पेश करने तक समिति के नाम पर जनता और मीडिया का ध्यान प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों से भटकाने की कोशिश कर रही है।
नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने पिछले 4 सालों से विभिन्न प्रयोजनों के लिए जमीन खरीदने की अनुमति देकर अपने खास लोगों को उत्तराखंड की बहुमूल्य भूमि की नीलामी की है। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में जमीन की खुली नीलामी की छूट की संभावना और भूमि का अनियंत्रित क्रय-विक्रय 6 दिसंबर 2028 के बाद तब शुरू हुआ था जब पिछली भाजपा सरकार उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश) जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 143 (क) और 154 (2) में संशोधन कर उत्तराखंड में औधोगिकीकरण (उद्योग, पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य), कृषि और उद्यानिकी के नाम पर किसी को भी, कंही भी, कितनी ही मात्रा में जमीन खरीदने की छूट दे दी थी। उन्होंने दावा किया कि इन नियमों में बदलाव करने के बाद पिछले 4 सालों में भाजपा सरकार ने अपने चहेते उद्योगपतियों, धार्मिक और सामाजिक संगठनों को अरबों की जमीनें खरीदने की अनुमति दी है।
कहा कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति ने राज्य के सभी जिलाधिकारियों से जिलेवार बिभिन्न उद्योगपतियों, सामाजिक, धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं को भूमि खरीदने की स्वीकृतियों का ब्यौरा भी मांगा था। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि राज्य की जनता को भी यह जानने का हक है कि 6 दिसंबर 2018 को उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश) जमींदारी विनाश एवम भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की दो धाराओं में परिवर्तन के बाद उनकी सरकार या अधिकारियों ने किस-किस को कितनी जमीन खरीदने की अनुमति प्रदान की है। कहा कि पारदर्शिता का दावा करने वाली सरकार को इस बीच अपने चहेतों को दी गयी राज्य की बहुमूल्य भूमि का विवरण देना चाहिए। उन्होंने सरकार से प्रश्न किया है कि सरकार राज्य को ये भी बताए कि इन लोगों को भारी मात्रा में उत्तराखंड की बहुमूल्य जमीन उपहार में देने के बाद राज्य में कितना निवेश आया और कितने लोगों को इन निवेशों के द्वारा रोजगार मिला। आर्य ने कहा कि हिमांचल में हिमांचल टेनेंसी एक्ट की धारा-118 लागू है। वहां कोई भी बाहरी व्यक्ति जमीन नही खरीद सकता है। निवेश करने वाला व्यक्ति भले ही पार्टनर बन जाये परंतु भूमि हिमांचल के निवासी के ही नाम रहती है। सरकार को बताना चाहिए क्या समिति ने उत्तराखंड में भी ऐसा कोई प्राविधान करने की संस्तुति की है।
उन्होंने बताया कि समिति ने भूमि खरीदने की अनुमति देने के माध्यम को बदल कर मासूम जनता की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश मात्र की है। वर्तमान में उत्तराखंड में प्रचलित उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) में जन भावनाओं के अनुरूप हिमाचल प्रदेश की तरह परिवर्तन करने की बात करती है जबकि रिपोर्ट के बिभिन्न बिंदुओं से साफ पता चलता है कि ए बड़े और प्रभावशाली लोगों को जो भूमि खरीदने की अनुमति पहले जिला अधिकारी देते थे अब वह अनुमति शासन देगा।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि रिपोर्ट में स्वीकारा गया है कि अभी तक जिलाधिकारी द्वारा कृषि अथवा औद्यानिक प्रयोजन हेतु कृषि भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाती है। कतिपय प्रकरणों में ऐसी अनुमति का उपयोग कृषि/औद्यानिक प्रयोजन न करके रिसोर्ट/निजी बंगले बनाकर दुरुपयोग हो रहा है। इससे पर्वतीय क्षेत्रों में लोग भूमिहीन हो रहें और रोजगार सृजन भी नहीं हो रहा है।
उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि सरकार द्वारा गठित उच्च अधिकार प्राप्त समिति जा स्वयं स्वीकार कर रही है कि जमीन खरीदने की अनुमतियों का दुरुपयोग हुआ है तो उन जमीनों को कानूनन राज्य सरकार में निहित किया जाना चाहिए था। उन्होंने आशंका व्यक्त की है कि अब क्या गारंटी होगी कि ऐसी अनुमतियां जिलाधिकारी स्तर के बजाय शासन से अनुमति देने के प्रावधान के बाद क्या गारंटी है कि उन अनुमतियों का दुरुपयोग नही होगा।
कहा कि सरकार को विभिन्न जिलों और मुख्यतः चारधाम और धार्मिक महत्व के जिलों में धार्मिक प्रयोजन के लिए बिभिन्न धर्मों और संप्रदायों द्वारा अनुमति के बाद ली गयी भूमि का ब्यौरा भी समिति ने मंगवाया था सरकार को यह भी सार्वजनिक करना चाहिए कि उसके अधिकारियों ने किस-किस धर्म और संप्रदाय को किन जगहों पर धार्मिक कार्यों हेतु जमीन खरीदने की अनुमति दी है।
कहा कि प्रदेश में 60-65 सालों से भू-बन्दोबस्त नही हुआ है समिति ने इसकी संस्तुति की है राज्य सरकार को इस संस्तुति को मानते हुए शीघ्र भूमि बंदोबस्त की प्रक्रिया पशुरू करनी चाहिए। कहा कि समिति की रिपोर्ट में नया कुछ भी नही है। सरकार की नियत उत्तराखंड की जमीन बचाने की नही है बाहरी और बड़े लोगों द्वारा जमीन खरीदने की अनुमति देने के स्तर को जिले से बदल कर शासन कर दिया है।